Followers

Friday, December 30, 2011

कर्म

अपनों को सौप कर आबरू
                       मैंने गुनाह कर दिया...
छीन ली जब दलालों ने कुर्सी
                     फिर क्यू  मै मौन रह गया...
लूटते रहे वो माँ  की आबरू
                      खंजरो से उसने तार तार कर दिया...
मै निकला ऐसा कपूत जो
                       देखकर  भी अनदेखा  कर गया......
  अब जो न उठाई आवाज
                           क्या हमें इतिहास माफ़ करेगा
अब भी न उठाई आवाज तो
                            फिर कौन इन्साफ करेगा.......

देश के सम्मान का मजाक मत बनने दो  
                          आत्म सम्मान के खातिर कुछ  तो करो .....
आज नहीं तो कल मरना ही होगा
                           आज मरे तो कल अपना बेहतर होगा......
जन्मभूमी पुकार रही है
                                अब देश की ललकार यही है.........
 भ्रस्टाचार मुक्त हो हो भारत
                                  जन जन की आवाज यही है .............


                rachanakaar --pradeep tiwari
                www.pradeeptiwari.mca@gmail.com






   

Wednesday, December 28, 2011

प्यार


 

उसने कहा क्या दूर रह सकोगे मुझसे,
मैंने कहा  कभी अलग  था ही नहीं  तुझसे|

उसने कहा मेरे बिन क्या जी पाओगे तुम इस  जग  में ,
मैंने कहा कभी  मेरा दिल अलग था ही नहीं तुझसे |
    
एक बार सोचा था कभी
तभी साशे अटकने सी लगी  थी .....

तभी में समझा  गया था  
मेरे जिन्दगी की डोर बधी है बस तुझसे|


       rachanakar-pradeep tiwari
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

प्यार


 

उसने कहा क्या दूर रह सकोगे मुझसे,
मैंने कहा  कभी अलग  था ही नहीं  तुझसे|

उसने कहा मेरे बिन क्या जी पाओगे तुम इस  जग  में ,
मैंने कहा कभी  मेरा दिल अलग था ही नहीं तुझसे |
    
एक बार सोचा था कभी
तभी साशे अटकने सी लगी  थी .....

तभी में समझा  गया था  
मेरे जिन्दगी की डोर बधी है बस तुझसे|


       rachanakar-pradeep tiwari
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

मेरा तम




अधियारे की रोशनी  ने 
                    सूरज को छुपा दिया|
ऐसा लगा अबकी ग्रहण की
                       तम ने अपना घर बना लिया|
एक जुगनू  चमकी थी
                         पर अधियारा छटा नहीं|
पर कोशिश ऐशी  थी उसकी 
                           की दिल से कभी बुझा नहीं|
जीवन पथ था ऐसा उसका
                            अंधियारे मे भी छुपा नहीं|
चल अब हम मिल दिल जुगुनू जलाये
                             इस तम को को मार भगाए|
जुगुनू जल दीपक होंगे
                             दीपक जल होंगे सूरज|  
सूरज होगा ऐसा  की
                            होगी पूरी रोशनी की जरुरत|    




                 रचनाकार --pradeep तिवारी
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com
kavipradeeptiwari.blogspot.com


Thursday, November 17, 2011

आज भी प्यार है तुझे ..


मै जनता हु आज भी प्यार  है तुझे ..
   मेरे हर एहसास ,
                      आज भी यद् होंगे तुझे|
मेरी हर बात,
                      याद जरुर आती होगी तुझे|
वो लड़ना झगड़ना ,
                       रूठना,मानना याद होगा तुझे|
लाख करले तू बहाने खुश रहने के.........
                         पर अकेले मे आंशू तो बहते होंगे तेरे|
मेरे दूर जाने  पर भी,
                         मेरे लौटने का इन्तजार तो होगा तुझे|
जब इतना प्यार था,
                         तो छोड़ा क्यों  मुझे|
तू मुझे छोड़ गई,
                     मुझसे मेरी जिन्दगी रुठ गई|
अब लौट कर आकर
                      मनाऊ तो मनाऊ कैसे तुझे|



                    रचनाकार--प्रदीप तिवारी
                                                          www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
|


Monday, November 14, 2011

जीवन पथ

मुस्कुराहटो को हमने अपना बना लिया|
गमो को हमने सीने मई छुपा लिया|                  
ज़माने वाले तो हमें यू ही मार देते,
तो हमने मौत को ही अपना हमसफ़र बना लिया|


रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.pradeeptiwari.blogspot.com

मेरी तन्हाई



ज़माने भर की महफ़िल वीरान लगी, 
बस तू ही मुझे सबसे खास लगी|            
 हर अपना बेगाना होने लगा ,
 बस तू ही मेरे सबसे पास लगी|
 हर जख्म हरा करने को दिल चाहा,
 इन जख्मो मे तेरी याद  बसी|
 हम जानते थे अंजामे मोहब्बत का,
 फिर भी क्यों मुझे  तू मेरी जान लगी|
  जानता था तेरी बेवफाई न जाने कब से,
पर जानते हुए भी क्यों तुझसे ही  वफ़ा की आस  लगी|


रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com

Sunday, October 30, 2011

मेरी किस्मत

उन्हें याद आया जब वाफाओ का फशाना मेरा ,
वे तड़प तड़प कर बेतहाशा पछताए|                     
वो अपने गुनाहों की माफी मागने घर मेरे आये|
मेरे घर वालो ने मेरा नया पता दिया उनको |             
वो दौड़ते दौड़ते हमसे मिलने वहा भी  वो आये|
दहलीज पर मेरे खूब आवाज लगाईं उन्होंने,
आशुओं से भिगोया भी जी भर कर मुझको|
पर हम तो ऐसा सोये अपनी कब्र पर 
की जाग भी न पाए उनकी इस दस्तक पर.

रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com

मै और मेरी वफ़ा


तुने मुझे बेवफा कहा,ये भी मुझे मंजूर है,
तेरी जिन्दगी मुझसे नहीं कही तो जरुर है|      
हमने अपनी वफ़ा को बेवफा नाम दे दिया,
क्यू की तेरी किस्मत का सितारा कोई और है|
तेरी राहों  में  फूल  बिछाते  रहे हम,                 
गमो को छुपाकर हसते रहे हम|
मेरे अंधेरो का साया न मिले तुझे ,
तेरी रोशनी के लिए जलते रहे हम|
वफादारी वो भी न करता तेरे लिए ,
जो बेवफा बनकर करते रहे हम|
जिस मंजिल मे बैठकर तुम इतरा रहे हो आज ,
उस मंजिल की सीढी बनाते रहे हम|
तेरे पल पल मुस्कराहट की चाहत मे,
तिल तिल कर मरते रहे हम|  








रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.pradeeptiwari.blogspot.com

Tuesday, October 11, 2011

परिवर्तन

जमाने को अपने हालात क्या बतलाते,
हम अपनों को दिए जख्म सिल रहे है|
         जज्बातों की आँधी कब की सांत हो चुकी '
        अब तो  हम  बस अपनों से लड़ रहे है|
जिन्दगी दी थी अपनों को कभी'
वही मेरे  मौत पर हस रहे है|
       अपनों को रखा था हमेसा  करीब
       क्यों वो  अब पराये से  लग रहे है|
मौत तो कब की हो चुकी है मेरी,
फिर क्यों  मरे प्राण अटके पड़े है|
         कब्र खोदी थी  खुद ही मैंने अपनी,
        फिर क्यों दफ़न होने से डर रहे है|

रचनाकार--प्रदीप तिवारी 
www.pradeeptiwari.blogspot.com
pradeeptiwari.mca@gmail.com

यादे

तेरे  जाने के बाद तेरी पहचान  अभी बाकी  है|
मुर्दा है जिस्म पर जान अभी बाकी  है|
खुदा ने नवाजा है तुझे  उस नूर से की,
उजड़ गया है चमन पर खुसबू अभी बाकी है|
  तूने  जमाना छोड़ दिया तो क्या हुआ,
इस ज़माने में तेरी  याद  अभी बाकि है |

रचनाकार --प्रदीप तिवारी 
www.pradeeptiwari.blogspot.com
pradeeptiwari.mca@gmail.com

मेरीदुआ

मेरे प्यार के हद की बात मत करना
हदों में रहना मेरी आदत नहीं
          मेरी चाहत मे  बसता है मेरा खुदा 
        बस अब  मेरे जीवन मे खुदा की इबादत ही सही
इश्क अगर आग का दरिया है तो
तेरे इश्क मे अब जलना ही सही
          तेरी मोहब्बत को मेरे मौत की दरकार है तो
         तेरे इश्क पर  अब मेरा मरना ही सही
  बस दुआ है इतनी खुदा से 
 उठे जब डोली तेरी ,तेरे घर से 
तब मेरा जनाजा उठे शान से मेरे  घर से .......

रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.pradeeptiwari.blogspot.com
pradeeptiwari.mca@gmail.com

          

मेरी वफ़ा

  सारे ज़माने ने कहा मुझसे ,
इस बेवफा के जाल मई मत फसना|
             फिर भी हम उनके ,
           जाल मे फसते चले गए|
लूटने का इरादा था उनका पक्का,
 पर वो खुद हमसे लुटते चले गए|
                उनकी हर बेवफाई को,
           हम वफ़ा का सहारा देते चले गए|
जो बेवफा थे इस सारे जहा में,
वो हमारे इश्क मे वफादार बन गए| 
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
 www.kavipradeeptiwari.blogspot.com

pradeeptiwari.mca@gmail.com

Saturday, October 8, 2011

मै और तुम =मै


गमो का तूफ़ान सीने मे  थाम रखा है|
आसुओं से तेरा चमन उजड़ा तो उजाडा कैसे जाये

          मुस्कराहट को ओठो मे बसा लिया हमने |
         कही तू बेवफा बदनाम ना हो जाये

भूलने की कोशिस हजार की मैंने 
पर दिल मे बसे हुए को भूला कैसे जाये
            
             मोहब्बत को हमने खुदा मान  लिया |
             अब बिना इबादत रहा  तो रहा कैसे जाये|

बेवफाई की आदत होगी तुम्हे
वफ़ा तो मेरे रगों मे है|
 तू ही बता
तुझसे इंतकाम लिया तो लिया  कैसे जाये
               तेरे झूठी वाफाओ के किस्से हमने फैला रखे है |
                 तू ही बता
                अपने प्यार को बदनाम किया तो किया कैसे जाये|



 रचनाकार -प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
pradeeptiwari.mca@gmail.com
         

Thursday, September 29, 2011

तलाश

 
शुखो की देहलीज पर
 शुखो को तलाशता हू 
                     अपनों के बीच पर 
                      खुद को तलाशता हू
जिन्दगी की दौड़ पर
जिन्दगी को तलाशता हू
           इस  भीड़ भरी  दुनिया पर
          खुद को तलाशता हू
इस तलास की तलाश पर
इधर उधर भागता हू
             ठहरने की फुरशत नहीं पर
             ठहरने  का ठौर तलाशता हू
जिन्दगी को जिन्दगी नहीं दी पर
मौत के लिए कफ़न तलाशता हू
            कहने के लिए तो सारा जहा है मेरा पर
           इस दुनिया मे अपना घर तलाशता हू 
            

रचनाकार--प्रदीप तिवारी
www.pradeeptiwari.blogspot.com
             


Wednesday, September 28, 2011

दिल

 

पत्थरों को मनाने मे
फूलो का कत्ल क्या करना|
      खुद के खातिर किसी बेक़सूर को
      उसके गुलशन से जुदा क्या करना
खुद की ख़ुशी के लिए
किसी को दुखी क्या करना
       पत्थरो के पिघलाने  से अछ्छा है मेरे दोस्त
        फूलो के  प्यार को अपना समझना 
       रचनाकार -प्रदीप तिवारी
      www.kavipradeeptiwari.blogspot.com

मेरा बेटा




जब वो छोटा बच्चा था,
बड़ा होने के लिए तडपता था|
मासूमियत पहचान थी उसकी ,
छोटी छोटी बातो पर लड़ता था|
मेरा हाथ पकड़कर वो ,
रहो पर वो चलता था|
जिद करना आदत थी उसकी
हर जिद पर वो जिद करता था|




आज अब वो बड़ा हो गया
दुनियादारी जान गया वो|
खुद को बस भूलकर
सबको पहचान गया वो|
मैंने उसका भार उठाया
मुझे ही भार मान गया वो|
बुढ़ापे मे उम्मीद थी उससे
पर जीते जी मुझे  मार  गया वो |



रचनाकार -प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
pradeeptiwari.mca@gmail.com
9584533161

Friday, September 16, 2011

जिंदगी की दौड़

जिंदगी की दौड़ में दौड़ता चला गया,

पीछे न रह जाऊं किसी से,

यही सोचकर भागता चला गया,

सही-गलत सोचने का वक्त ही न था,

बस हरहाल में बढता चला गया,

दिल टूटे, सपने टूटे, छूट गया सब का साथ,

बस सभी को सीढ़ी समझकर चढ़ता चला गया,

जीतने की चाहत में,

फरेब सीखा, धोखा सीखा, सीखे हर जंजाल,

बस हर जाल को सुलझाता चला गया,

मंजिल मिली तब जाकर ठहरा,

बस वहाँ ख़ामोशी से ठहरा ही रह गया,

न रिश्ते थे, न नाते थे, न था प्यार भरा संसार,

अपनों का सन्नाटा था , तन्हाई थी ,

छूट गया था मेरा सब घरबार.




रचनाकार -प्रदीप तिवारी

www.kavipradeeptiwari.blogspot.com

www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

Thursday, September 15, 2011

इंजीनियर

इंजीनियर


निर्माण के आगे निर्माण की सोचो,
जहाँ से हो राह असंभव,
उस जगह से ही रास्ता खोजो !
जहाँ हो ठहरना नामुमकिन,
वहां अपना घर बसा लो !
इंजीनियर्स के लिए कुछ भी असंभव नहीं,
बस असंभव में संभावनाओ को खोजिये !
इंजीनियर पहचान का मोहताज नहीं होता,
पहचान तो अपने आप बन जाती है,
बस अपने आविष्कारों में अपनी पहचान खोजिये!

इंजीनियर दिवस की शुभकामनाये ( १५ सितम्बर )

रचनाकार - प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
E-mail : pradeeptiwari.mca@gmail.com

Sunday, September 11, 2011

सीता



                  धैर्य ,साहश ,विस्वाश ,की मूर्ती थी|
                  सच्ची,नारीधर्म की प्रतिमूर्ति थी |
पुत्री धर्म ,पत्नी धर्म,माँ धर्म क्या खूब निभाया|
   सीता के लिए हर मुख से माँ निकल आया |
                    
                      कास फिर से चरित्र निर्माण हो जाये|
                      इस भारत का बेडा पार हो जाये|
                       हर घर मे लव ,कुश हो जायेंगे,
                        रावणों का संघार हो जाये|

पर चरित्र निर्माण कही खो गया है|
हर जगह आधुनिकता का वास हो गया है|
सीता शिर्फ़ रामायण का पात्र बची है|
नारी धर्म का नाश हो रहा है|
चलो उठ नव चेतना लाये|
हर बच्ची को सीता का पाठ  पढाये |

        
रचनाकार-प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

Wednesday, September 7, 2011

जीवन


 शाम ढले जब  मेरे घर दीपक जले
  मेरा मन घर जाने से बहुत डरे.
    घर मे बीमार माँ दावाइयो के इंतजार मे होगी 
  बच्चे किताबो के इंतजार मे देख रहे होंगे दवार
                                                 बीबी सोचा रही होगी   आज  aa  जाए कुछ 
                                                 तो पडोशी से जाकर न मंगू  उधार
  इन सभी बातो को सोचकर मन घबरा रहा था
   मेरा ब्लडप्रेशर बढ़ता ही जा रहा था
    सोचा आज कहा से लाऊ उधार
    इसशे अछ्छा है क्यों  न मर जाऊ
                                       इन्ही ख्यालो मे खोये हुए देर हो चुकी थी
                                        घर पर माँ और पत्नी के मन मे आशंका घेर चुकी थी
                                         माँ का व्याकुल मन घबरा रहा था
                                        पत्नी का झूठा शाहश उन्हें ढ़ाढ़श बधा रहा था
  घर पहुचते ही माँ  ने  गले से लगाया
  पत्नी ने मुझे  आशुओ से भिगोया
 तब मुझे लगा क्या करने जा रहा था
 अपनी खुशियों को ख़ुद ही मिटाने वाला था
  ये जरूरते है आज नहीं तो कल होंगी पूरी
                 इनके बिना मेरी मेरे बिना इनकी जिन्दगी है अधूरी  ||||


                                                                                          रचनाकार
                                                                                     Pradeep tiwari
                                                                                      www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
www.pradeeptiwari.gmail.com


Tuesday, September 6, 2011

परिवर्तन



मेरा कुत्ता मेरे साथ रहता है|
मेरा कुत्ता  मेरे पास रहता है|
       इसको देखकर लोगो को, 
       वफादारी का एहसास रहता है|
इंसानों मे भी नहीं है  वो ,
जो मेरे कुत्ते के पास है|
           
मेरे कुत्ते ने भोकना कर दिया है कम,
क्यों की ये अदा तो अब इंसानों के पास है|
            जीवन मे समर्पण तो कुत्ते के पास है,
            छीनना  और झपटना इंसानों मे आम बात है|
                            
              आजकल कुत्ते चूहे,बिल्ली से भी कर लेते है दोस्ती,
              पर पता नहीं क्यु इन्शान,इन्शान से नाराज है|
हम जानवर हो गए या जानवर इन्शान,
इसका जबाब न मेरे पास है, इसका जबाब आप के पास है|
                                                                    
                                                                   
                                                        
                                                      
 रचनाकार --प्रदीप तिवारी
                                                                     www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
 www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

Sunday, September 4, 2011

मेरा सन्देश


 १

 मंजिल को निगाहों मे रखना |
अपनों से बड़ो का सम्मान करना|
बुरइयो से कोशो दूर रहना|
                                  परेशानियों को हस कर सहना|
जिन्दगी को एक मकशद देना|
असफलता को सीढ़ी समझना|
हर हाल मे आगे को बढ़ना|
बस मेरा आप से यही है कहना|
    २
आने वाले भविष्य का ,
                   आज है आप  सब|
सभलकर चलना
               गिरने का है डर|
मंजिल तुम्हारे कदम चूमेंगी,
               यार ठीक से पढाई तो कर|
            ३
मंजिल पाए आप 
                यही दुआ है हमारी|
सारी खुसिया मिले आपको ,
                 यही खुदा से फरियाद है हमारी|



रचनाकार -प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com


Teacher




शिक्षक होकर भी शिक्षक के बारे मे ,
लिखते हुए मेरी कलम अटकने लगी|
शायद वो मूल बातो से कही भटकने लगी|
शायद शिक्षक ,शिक्षक नहीं,या शिष्य ,शिष्य नहीं,
या फिर गुरु शिष्य की परंपरा कही भटकने लगी|
फिर भी कहना चाहूँगा एक बात,
गुरु हो या शिष्य हो बस दोनों मे कर्त्तव्य निष्ठां हो |
आचार ,व्यव्हार से दोनों समर्पित हो,
सच्चाई ,ईमानदारी का पाठ सर्वोपरि हो|
राष्ट्र निर्माण ,समाज निर्माण मे आपका योगदान अतुलनीय हो|
बस यही अभिलाषा है मेरी आपका भविष्य ,
चन्द्रमा की सीतलता लिए सूर्य की तरह उज्जवल हो|

रचनाकार -प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

Saturday, September 3, 2011

fir bewafai


धूप की तपिस मे,
ठंडी छाओ थी|
गम के मौसम मे,
ख़ुशी की बहार थी|
मेरे अकेलेपन मे,
पूरी महफ़िल थी|
मेरे मृत जीवन मे
अमृत सुधा थी |
                             उसको पाके जीवन लगा था मै जीने|
                              पर क्यों फिर मार  दिया मुझे उसने|
                             क्यों  मारा उसने यूं  तड़पा कर हमें|
                              हम तो यूं ही जान दे देते उन्हें|
                                   

रचनाकार--प्रदीप तिवारी
                                      
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
                                       
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

Friday, September 2, 2011

bewafai



उन्मुक्त गगन की आभा थी,
 न  कोई  मेरी सीमा  थी|
जग सारा अपना लगता था.
हर सपना सच्चा लगता था|
पास मेरे जब तू होती थी ,
हर लम्हा बस अपना था|
भूल गया था खुद को मै,
मै तो बस तेरा  था |
                                  भुला दिया तूने  मुझको,
                           कैद हो गया पिंजरे मे |
                           दूर गई जब से  तू  मुझसे ,
                           एक दर्द जगा है  सीने मे |
                            मुक्त प्रेम की आंधी को ,
                            कैद किया मैंने सीने मे|
                             तुझ बिन ये जग सूना है,
                              अब मजा नहीं है जीने मे|
                              

  रचनाकार-प्रदीप तिवारी
   www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
  www.pradeeptiwari.mca@gmail.com
                    

my love




आशमा अपनी तुम उचाई बढा लो ,
हमें अपने हौशलो पर पूरा भरोशा है|

अंधेरो मई रह के देख रहे थे ,
कि  अंधेरो मे अभी तक दम कितना है|

दुशमनो कि पहचान थी हमें कब से,
पर देखना था मेरे दोस्त कि रजा क्या है|

मिटने का भी मजा लेते रहे हम,
कऊ  कि उनको  खुस  देखने का अलग ही मजा है|

हम कमजोर तो थे ही नहीं कभी ,
पर उनसे हरने का अपना मजा है |

यूं तो जिन्दगी अभी बहुत थी मरी ,
पर उनके लिए मरने का अलग ही मजा है |

समझ सकी ना वो मेरे जज्बातों को ,
मेरा जीवन फिर भी  उशमे फ़ना है|


रचनाकार -प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
www.sahityapremisangha.com