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Wednesday, September 19, 2012

आम आदमी



हर सवाल में ही कई सवाल है ।

जवाब खुद बखुद फटे हाल है।

खजाने  की चाभी लुटेरो के पास है।

जनता रो रो हो रही बेहाल है। 

भ्रष्ट नेता बना हमारा सरताज है।

चोर ,लुटेरो और नेता में  बड़ी साठ गाठ है ।

पुलिस भी खड़ी हो रही इनके साथ है।

 महगाई से चारो ओर मचा हा हा कार है।

नेता कह रहे यही देश का विकास है।

राष्ट्र प्रेमी राष्ट्र द्रोही कहे जा रहे है। 

देश द्रोहियो की बड़ी ढाठ बाठ है।

आम आदमी फिर भी जी रहा प्रदीप 

इसमें सच में बड़ी ताज्जुब की बात है। 

इसमें सच में बड़ी ताज्जुब की बात है।



रचनाकार -प्रदीप तिवारी 

एक मुलाकात


आखो और इशारों से होती थी हमारी बात ,
पर किस्मत न करा रही थी हमारी मुलाकात ।
दिल ही दिल में मेरे  पल रहे थे ढेरो ख्वाब ।
पर उससे मिलने के लिए हिम्मत देती थी जवाब ।
मैंने एक दिन उस्से मिलने की हिम्मत दिखाई ।
उससे मिलने की एक दिन आस नजर आई ।
पर उससे मिलते ही मेरे पसीने छुट गए मेरे भाई ।
देखते ही  पता चला पूरा पीस ही डिफेक्टिव् है  ।
इसकी बाई आंख तो बाबा रामदेव की तरह फडकती है।
रुकरुक कर बोलना और चलने को,
 हम अबतलक समझाते थे उसका सरमाना ।
पर असल में तो उसकी जुबान और चाल दोनों अटकती है।
पता चला असल  तो में ये लड़की लकवे का शिकार है।
  जिसके कारण इसका जीना हुआ दुस्वार है।
इस हालात को देखकर मेरे प्यार का सुनामी शांत हो गया।
कुछ पल के लिए तो मै खुद  को ही हार गया।
अपने आप को सहेजकर मैंने अपना फर्ज अदा करने की गुजारिश।
उसने मुस्कुराकर कहा मौत मई मेरी मंजिल ,
तुम न बनो मेरी पथरीली राह के  मुशाफिर।
इन हालात मई भी वो मुस्कुरा रही थी ।
वो खुश है इसका वो मुझे झूठा एहसास दिला रही थी।
मई कुछ कह पता उसके पहले ही वो जहा छोड़ गई ।
जिन्दगी जीते है कैसे वो मुझे जाते जाते सिखा गई ।
जिन्दगी जीते है कैसे वो मुझे जाते जाते सिखा गई ।

रचनाकार -प्रदीप तिवारी

बिटिया

जब बिटिया छोटी बच्ची थी,तब पायल छनकती थी |

मेरे नजर न आने पर ,पापा पापा चिल्लाती थी |

खूब लडती थी वो मुझसे ,जब खाली  हाथ घर आता था |

उसकी एक मुस्कान से ,मेरी थकान दूर  हो जाता थी |

जब दिन भर  काम करके मै  लौट कर घर  आता था |

घोडा हाथी बनने की जिद करती ,फिर मुझ  पर सवारी करती थी |

मेरे दर्द और शिकन को ,वो दूर से जान  लेती थी |

मेरी बिटिया मेरे दर्द को ,दूर से पहचान लेती  थी |

कभी न कोई फरमाइश की ,मेरे हर टेंशन की वो  दवाई थी |

हसते खेलते न जाने वो कब बड़ी हो गई , 

गुड्डे के संग खेलते खेलते , वो शादी  कर के चली गई |

उसकी खट्टी मीठी बाते याद कर ,आसुओ  का सैलाब उमड़ आता  है |

न जाने कैसे उसी वक़्त उसका ,मेरे पास फोन चला आता है |

उससे शुख दुख जान  करके सुकून आ जाता है |

ये बिटिया भी न कितनी अजीब होती है|

हमारे दिल के कितने करीब होती है|

शायद इसीलिए हमें इतनी अजीज होती है | 
रचनाकार -प्रदीप तिवारी