जिंदगी की दौड़ में दौड़ता चला गया,
पीछे न रह जाऊं किसी से,
यही सोचकर भागता चला गया,
सही-गलत सोचने का वक्त ही न था,
बस हरहाल में बढता चला गया,
दिल टूटे, सपने टूटे, छूट गया सब का साथ,
बस सभी को सीढ़ी समझकर चढ़ता चला गया,
जीतने की चाहत में,
फरेब सीखा, धोखा सीखा, सीखे हर जंजाल,
बस हर जाल को सुलझाता चला गया,
मंजिल मिली तब जाकर ठहरा,
बस वहाँ ख़ामोशी से ठहरा ही रह गया,
न रिश्ते थे, न नाते थे, न था प्यार भरा संसार,
अपनों का सन्नाटा था , तन्हाई थी ,
छूट गया था मेरा सब घरबार.
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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बहुत भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteजिंदगी भर लगती रही दौड़
कहाँ रुकूं नहीं मिला कोई मोड़
पीछे न रह जाऊं किसी से,
ReplyDeleteयही सोचकर भागता चला गया
Sach kaha aapne ... yahi hai jindagi
My Blog: Life is Just a Life
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wow...........whole life in a priceless poem...........!
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