उन्हें याद आया जब वाफाओ का फशाना मेरा ,
वे तड़प तड़प कर बेतहाशा पछताए|
वो अपने गुनाहों की माफी मागने घर मेरे आये|
मेरे घर वालो ने मेरा नया पता दिया उनको |
वो दौड़ते दौड़ते हमसे मिलने वहा भी वो आये|
दहलीज पर मेरे खूब आवाज लगाईं उन्होंने,
आशुओं से भिगोया भी जी भर कर मुझको|
पर हम तो ऐसा सोये अपनी कब्र पर
की जाग भी न पाए उनकी इस दस्तक पर.
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
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