ज़माने भर की महफ़िल वीरान लगी,
बस तू ही मुझे सबसे खास लगी|
हर अपना बेगाना होने लगा ,
बस तू ही मेरे सबसे पास लगी|
हर जख्म हरा करने को दिल चाहा,
इन जख्मो मे तेरी याद बसी|
हम जानते थे अंजामे मोहब्बत का,
फिर भी क्यों मुझे तू मेरी जान लगी|
जानता था तेरी बेवफाई न जाने कब से,
पर जानते हुए भी क्यों तुझसे ही वफ़ा की आस लगी|
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
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