अधियारे की रोशनी ने
सूरज को छुपा दिया|
ऐसा लगा अबकी ग्रहण की
तम ने अपना घर बना लिया|
एक जुगनू चमकी थी
पर अधियारा छटा नहीं|
पर कोशिश ऐशी थी उसकी
की दिल से कभी बुझा नहीं|
जीवन पथ था ऐसा उसका
अंधियारे मे भी छुपा नहीं|
चल अब हम मिल दिल जुगुनू जलाये
इस तम को को मार भगाए|
जुगुनू जल दीपक होंगे
दीपक जल होंगे सूरज|
सूरज होगा ऐसा की
होगी पूरी रोशनी की जरुरत|
रचनाकार --pradeep तिवारी
www.pradeeptiwari.mca@gmail.com
kavipradeeptiwari.blogspot.com
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