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Thursday, September 29, 2011

तलाश

 
शुखो की देहलीज पर
 शुखो को तलाशता हू 
                     अपनों के बीच पर 
                      खुद को तलाशता हू
जिन्दगी की दौड़ पर
जिन्दगी को तलाशता हू
           इस  भीड़ भरी  दुनिया पर
          खुद को तलाशता हू
इस तलास की तलाश पर
इधर उधर भागता हू
             ठहरने की फुरशत नहीं पर
             ठहरने  का ठौर तलाशता हू
जिन्दगी को जिन्दगी नहीं दी पर
मौत के लिए कफ़न तलाशता हू
            कहने के लिए तो सारा जहा है मेरा पर
           इस दुनिया मे अपना घर तलाशता हू 
            

रचनाकार--प्रदीप तिवारी
www.pradeeptiwari.blogspot.com
             


Wednesday, September 28, 2011

दिल

 

पत्थरों को मनाने मे
फूलो का कत्ल क्या करना|
      खुद के खातिर किसी बेक़सूर को
      उसके गुलशन से जुदा क्या करना
खुद की ख़ुशी के लिए
किसी को दुखी क्या करना
       पत्थरो के पिघलाने  से अछ्छा है मेरे दोस्त
        फूलो के  प्यार को अपना समझना 
       रचनाकार -प्रदीप तिवारी
      www.kavipradeeptiwari.blogspot.com

मेरा बेटा




जब वो छोटा बच्चा था,
बड़ा होने के लिए तडपता था|
मासूमियत पहचान थी उसकी ,
छोटी छोटी बातो पर लड़ता था|
मेरा हाथ पकड़कर वो ,
रहो पर वो चलता था|
जिद करना आदत थी उसकी
हर जिद पर वो जिद करता था|




आज अब वो बड़ा हो गया
दुनियादारी जान गया वो|
खुद को बस भूलकर
सबको पहचान गया वो|
मैंने उसका भार उठाया
मुझे ही भार मान गया वो|
बुढ़ापे मे उम्मीद थी उससे
पर जीते जी मुझे  मार  गया वो |



रचनाकार -प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
pradeeptiwari.mca@gmail.com
9584533161

Friday, September 16, 2011

जिंदगी की दौड़

जिंदगी की दौड़ में दौड़ता चला गया,

पीछे न रह जाऊं किसी से,

यही सोचकर भागता चला गया,

सही-गलत सोचने का वक्त ही न था,

बस हरहाल में बढता चला गया,

दिल टूटे, सपने टूटे, छूट गया सब का साथ,

बस सभी को सीढ़ी समझकर चढ़ता चला गया,

जीतने की चाहत में,

फरेब सीखा, धोखा सीखा, सीखे हर जंजाल,

बस हर जाल को सुलझाता चला गया,

मंजिल मिली तब जाकर ठहरा,

बस वहाँ ख़ामोशी से ठहरा ही रह गया,

न रिश्ते थे, न नाते थे, न था प्यार भरा संसार,

अपनों का सन्नाटा था , तन्हाई थी ,

छूट गया था मेरा सब घरबार.




रचनाकार -प्रदीप तिवारी

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www.pradeeptiwari.mca@gmail.com

Thursday, September 15, 2011

इंजीनियर

इंजीनियर


निर्माण के आगे निर्माण की सोचो,
जहाँ से हो राह असंभव,
उस जगह से ही रास्ता खोजो !
जहाँ हो ठहरना नामुमकिन,
वहां अपना घर बसा लो !
इंजीनियर्स के लिए कुछ भी असंभव नहीं,
बस असंभव में संभावनाओ को खोजिये !
इंजीनियर पहचान का मोहताज नहीं होता,
पहचान तो अपने आप बन जाती है,
बस अपने आविष्कारों में अपनी पहचान खोजिये!

इंजीनियर दिवस की शुभकामनाये ( १५ सितम्बर )

रचनाकार - प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
E-mail : pradeeptiwari.mca@gmail.com

Sunday, September 11, 2011

सीता



                  धैर्य ,साहश ,विस्वाश ,की मूर्ती थी|
                  सच्ची,नारीधर्म की प्रतिमूर्ति थी |
पुत्री धर्म ,पत्नी धर्म,माँ धर्म क्या खूब निभाया|
   सीता के लिए हर मुख से माँ निकल आया |
                    
                      कास फिर से चरित्र निर्माण हो जाये|
                      इस भारत का बेडा पार हो जाये|
                       हर घर मे लव ,कुश हो जायेंगे,
                        रावणों का संघार हो जाये|

पर चरित्र निर्माण कही खो गया है|
हर जगह आधुनिकता का वास हो गया है|
सीता शिर्फ़ रामायण का पात्र बची है|
नारी धर्म का नाश हो रहा है|
चलो उठ नव चेतना लाये|
हर बच्ची को सीता का पाठ  पढाये |

        
रचनाकार-प्रदीप तिवारी
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Wednesday, September 7, 2011

जीवन


 शाम ढले जब  मेरे घर दीपक जले
  मेरा मन घर जाने से बहुत डरे.
    घर मे बीमार माँ दावाइयो के इंतजार मे होगी 
  बच्चे किताबो के इंतजार मे देख रहे होंगे दवार
                                                 बीबी सोचा रही होगी   आज  aa  जाए कुछ 
                                                 तो पडोशी से जाकर न मंगू  उधार
  इन सभी बातो को सोचकर मन घबरा रहा था
   मेरा ब्लडप्रेशर बढ़ता ही जा रहा था
    सोचा आज कहा से लाऊ उधार
    इसशे अछ्छा है क्यों  न मर जाऊ
                                       इन्ही ख्यालो मे खोये हुए देर हो चुकी थी
                                        घर पर माँ और पत्नी के मन मे आशंका घेर चुकी थी
                                         माँ का व्याकुल मन घबरा रहा था
                                        पत्नी का झूठा शाहश उन्हें ढ़ाढ़श बधा रहा था
  घर पहुचते ही माँ  ने  गले से लगाया
  पत्नी ने मुझे  आशुओ से भिगोया
 तब मुझे लगा क्या करने जा रहा था
 अपनी खुशियों को ख़ुद ही मिटाने वाला था
  ये जरूरते है आज नहीं तो कल होंगी पूरी
                 इनके बिना मेरी मेरे बिना इनकी जिन्दगी है अधूरी  ||||


                                                                                          रचनाकार
                                                                                     Pradeep tiwari
                                                                                      www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
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Tuesday, September 6, 2011

परिवर्तन



मेरा कुत्ता मेरे साथ रहता है|
मेरा कुत्ता  मेरे पास रहता है|
       इसको देखकर लोगो को, 
       वफादारी का एहसास रहता है|
इंसानों मे भी नहीं है  वो ,
जो मेरे कुत्ते के पास है|
           
मेरे कुत्ते ने भोकना कर दिया है कम,
क्यों की ये अदा तो अब इंसानों के पास है|
            जीवन मे समर्पण तो कुत्ते के पास है,
            छीनना  और झपटना इंसानों मे आम बात है|
                            
              आजकल कुत्ते चूहे,बिल्ली से भी कर लेते है दोस्ती,
              पर पता नहीं क्यु इन्शान,इन्शान से नाराज है|
हम जानवर हो गए या जानवर इन्शान,
इसका जबाब न मेरे पास है, इसका जबाब आप के पास है|
                                                                    
                                                                   
                                                        
                                                      
 रचनाकार --प्रदीप तिवारी
                                                                     www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
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Sunday, September 4, 2011

मेरा सन्देश


 १

 मंजिल को निगाहों मे रखना |
अपनों से बड़ो का सम्मान करना|
बुरइयो से कोशो दूर रहना|
                                  परेशानियों को हस कर सहना|
जिन्दगी को एक मकशद देना|
असफलता को सीढ़ी समझना|
हर हाल मे आगे को बढ़ना|
बस मेरा आप से यही है कहना|
    २
आने वाले भविष्य का ,
                   आज है आप  सब|
सभलकर चलना
               गिरने का है डर|
मंजिल तुम्हारे कदम चूमेंगी,
               यार ठीक से पढाई तो कर|
            ३
मंजिल पाए आप 
                यही दुआ है हमारी|
सारी खुसिया मिले आपको ,
                 यही खुदा से फरियाद है हमारी|



रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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Teacher




शिक्षक होकर भी शिक्षक के बारे मे ,
लिखते हुए मेरी कलम अटकने लगी|
शायद वो मूल बातो से कही भटकने लगी|
शायद शिक्षक ,शिक्षक नहीं,या शिष्य ,शिष्य नहीं,
या फिर गुरु शिष्य की परंपरा कही भटकने लगी|
फिर भी कहना चाहूँगा एक बात,
गुरु हो या शिष्य हो बस दोनों मे कर्त्तव्य निष्ठां हो |
आचार ,व्यव्हार से दोनों समर्पित हो,
सच्चाई ,ईमानदारी का पाठ सर्वोपरि हो|
राष्ट्र निर्माण ,समाज निर्माण मे आपका योगदान अतुलनीय हो|
बस यही अभिलाषा है मेरी आपका भविष्य ,
चन्द्रमा की सीतलता लिए सूर्य की तरह उज्जवल हो|

रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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Saturday, September 3, 2011

fir bewafai


धूप की तपिस मे,
ठंडी छाओ थी|
गम के मौसम मे,
ख़ुशी की बहार थी|
मेरे अकेलेपन मे,
पूरी महफ़िल थी|
मेरे मृत जीवन मे
अमृत सुधा थी |
                             उसको पाके जीवन लगा था मै जीने|
                              पर क्यों फिर मार  दिया मुझे उसने|
                             क्यों  मारा उसने यूं  तड़पा कर हमें|
                              हम तो यूं ही जान दे देते उन्हें|
                                   

रचनाकार--प्रदीप तिवारी
                                      
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Friday, September 2, 2011

bewafai



उन्मुक्त गगन की आभा थी,
 न  कोई  मेरी सीमा  थी|
जग सारा अपना लगता था.
हर सपना सच्चा लगता था|
पास मेरे जब तू होती थी ,
हर लम्हा बस अपना था|
भूल गया था खुद को मै,
मै तो बस तेरा  था |
                                  भुला दिया तूने  मुझको,
                           कैद हो गया पिंजरे मे |
                           दूर गई जब से  तू  मुझसे ,
                           एक दर्द जगा है  सीने मे |
                            मुक्त प्रेम की आंधी को ,
                            कैद किया मैंने सीने मे|
                             तुझ बिन ये जग सूना है,
                              अब मजा नहीं है जीने मे|
                              

  रचनाकार-प्रदीप तिवारी
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my love




आशमा अपनी तुम उचाई बढा लो ,
हमें अपने हौशलो पर पूरा भरोशा है|

अंधेरो मई रह के देख रहे थे ,
कि  अंधेरो मे अभी तक दम कितना है|

दुशमनो कि पहचान थी हमें कब से,
पर देखना था मेरे दोस्त कि रजा क्या है|

मिटने का भी मजा लेते रहे हम,
कऊ  कि उनको  खुस  देखने का अलग ही मजा है|

हम कमजोर तो थे ही नहीं कभी ,
पर उनसे हरने का अपना मजा है |

यूं तो जिन्दगी अभी बहुत थी मरी ,
पर उनके लिए मरने का अलग ही मजा है |

समझ सकी ना वो मेरे जज्बातों को ,
मेरा जीवन फिर भी  उशमे फ़ना है|


रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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Thursday, September 1, 2011

mai kalam hu




भेद भाव कोई बैर नहीं 
कोई भी मुझसे  गैर नहीं
सब के लिए अर्पित  हूँ
लेखन के लिए समर्पित हु.
ऐश्वर्य, धन ,का माध्यम हु
जीवन का मै अमृत हु
करना मुझे स्मभालकर उपयोग
दूंगी तुम्हे नाम और सोहरत दोनों का योग.
करना न मेरा दुरूपयोग
दूंगी तुमको  हरदम  सहयोग.



रचनाकार --प्रदीप तिवारी
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kalam




कलम का पुजारी हू.
कलम मेरी बंदगी.
कलम से ही है मेरी जिन्दगी.
ख़ुशी,गम,प्रेम,वियोग, 
मे है मेरी साथी.
जिस रस को सोचा मैंने मन मे.
उसको लिखा है इसने अछरो मे.
प्रेम मे प्रेम रस है.
वीरो का वीर रस है.
रशिको का स्र्यंगार रस है.
कविका का काव्य रस है.
मेरा तो यह जीवन रस है.
इसकी इसी महिमा पर
मेरा संपूर्ण जीवन समर्पित है.


रचनाकार --प्रदीप तिवारी
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