उन्मुक्त गगन की आभा थी,
न कोई मेरी सीमा थी|
जग सारा अपना लगता था.
हर सपना सच्चा लगता था|
पास मेरे जब तू होती थी ,
हर लम्हा बस अपना था|
भूल गया था खुद को मै,
मै तो बस तेरा था |
भुला दिया तूने मुझको,
कैद हो गया पिंजरे मे |
दूर गई जब से तू मुझसे ,
एक दर्द जगा है सीने मे |
मुक्त प्रेम की आंधी को ,
कैद किया मैंने सीने मे|
तुझ बिन ये जग सूना है,
अब मजा नहीं है जीने मे|
रचनाकार-प्रदीप तिवारी
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Pardeep ji kya khoob kahi........ bahoot sunder
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