Followers
Monday, December 31, 2012
Sunday, December 30, 2012
""""""""""" सहादत """"""""""""""""""""""""""""""
मेरा मौन भी अब जोर जो से कहने लगा है।
मेरी खामोसी को अब जहा समझने लगा है।
तभी तो खड़े है लोग मेरे जाने के बाद भी ,
जानते हुए भी की मेरा आना अब मुमकिन नहीं ।
फिर भी न जाने ये युवा जिद पर क्यों अडा है
ये अजीब करवा है जो एक ओर ही चल पड़ा है।।।
करना हमें ही पड़ेगा ,लड़ना हमें ही पड़ेगा ,
अब सायद युवा भी अब ये समझाने लगा है ।।।
मेरी सहादत व्यर्थ नहीं गई ये देखकर ,
मेरी रूह को सुकून बड़ा है ,रूह को सुकून बड़ा है
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
Saturday, December 29, 2012
दामिनी के लिए दो शब्द
जिन्दगी को जीना अब उसे बोझ लगने लगा होगा \
मरहम ही अब उसे चोट लगने लगा होगा ।
सोचा होगा उसने ,यहाँ बहुत राजनीती है मेरे जिन्दा रहने में
जिन्दगी से ही उसका भरोषा उठने लगा होगा
छोड़ दिया होगा उसने जिन्दगी की राह में चलना उसने
उसको खुद का जिन्दा रहने से ज्यादा खामोश रहना ही सही लगा होगा ,,,
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
Monday, December 24, 2012
डेल्ही की पीड़ित लड़की के लिए
अस्मत को मेरी लूटकर
इज्जत को तार तार कर दिया।
खुशनुमा थी जिन्दगी मेरी ,
उसे वो जहन्नुम कर गया ।
इस जहा में सारे मेरे अपने ही थे,
फिर ऐसा वो कैसे कर गया।
यही सोचा कर मैंने पूछा .
खता क्या थी जो तू इतनी बड़ी सजा दे गया।
जाते जाते वो मुझे लडकी कह गया।।
जाते जाते वो मुझे लडकी कह गया।।
रचनाकार ---प्रदीप तिवारी
Wednesday, September 19, 2012
आम आदमी
हर सवाल में ही कई सवाल है ।
जवाब खुद बखुद फटे हाल है।
खजाने की चाभी लुटेरो के पास है।
जनता रो रो हो रही बेहाल है।
भ्रष्ट नेता बना हमारा सरताज है।
चोर ,लुटेरो और नेता में बड़ी साठ गाठ है ।
पुलिस भी खड़ी हो रही इनके साथ है।
महगाई से चारो ओर मचा हा हा कार है।
नेता कह रहे यही देश का विकास है।
राष्ट्र प्रेमी राष्ट्र द्रोही कहे जा रहे है।
देश द्रोहियो की बड़ी ढाठ बाठ है।
आम आदमी फिर भी जी रहा प्रदीप
इसमें सच में बड़ी ताज्जुब की बात है।
इसमें सच में बड़ी ताज्जुब की बात है।
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
एक मुलाकात
आखो और इशारों से होती थी हमारी बात ,
पर किस्मत न करा रही थी हमारी मुलाकात ।
दिल ही दिल में मेरे पल रहे थे ढेरो ख्वाब ।
पर उससे मिलने के लिए हिम्मत देती थी जवाब ।
मैंने एक दिन उस्से मिलने की हिम्मत दिखाई ।
उससे मिलने की एक दिन आस नजर आई ।
पर उससे मिलते ही मेरे पसीने छुट गए मेरे भाई ।
देखते ही पता चला पूरा पीस ही डिफेक्टिव् है ।
इसकी बाई आंख तो बाबा रामदेव की तरह फडकती है।
रुकरुक कर बोलना और चलने को,
हम अबतलक समझाते थे उसका सरमाना ।
पर असल में तो उसकी जुबान और चाल दोनों अटकती है।
पता चला असल तो में ये लड़की लकवे का शिकार है।
जिसके कारण इसका जीना हुआ दुस्वार है।
इस हालात को देखकर मेरे प्यार का सुनामी शांत हो गया।
कुछ पल के लिए तो मै खुद को ही हार गया।
अपने आप को सहेजकर मैंने अपना फर्ज अदा करने की गुजारिश।
उसने मुस्कुराकर कहा मौत मई मेरी मंजिल ,
तुम न बनो मेरी पथरीली राह के मुशाफिर।
इन हालात मई भी वो मुस्कुरा रही थी ।
वो खुश है इसका वो मुझे झूठा एहसास दिला रही थी।
मई कुछ कह पता उसके पहले ही वो जहा छोड़ गई ।
जिन्दगी जीते है कैसे वो मुझे जाते जाते सिखा गई ।
जिन्दगी जीते है कैसे वो मुझे जाते जाते सिखा गई ।
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
बिटिया
जब बिटिया छोटी बच्ची थी,तब पायल छनकती थी |
मेरे नजर न आने पर ,पापा पापा चिल्लाती थी |
खूब लडती थी वो मुझसे ,जब खाली हाथ घर आता था |
उसकी एक मुस्कान से ,मेरी थकान दूर हो जाता थी |
जब दिन भर काम करके मै लौट कर घर आता था |
घोडा हाथी बनने की जिद करती ,फिर मुझ पर सवारी करती थी |
मेरे दर्द और शिकन को ,वो दूर से जान लेती थी |
मेरी बिटिया मेरे दर्द को ,दूर से पहचान लेती थी |
कभी न कोई फरमाइश की ,मेरे हर टेंशन की वो दवाई थी |
हसते खेलते न जाने वो कब बड़ी हो गई ,
गुड्डे के संग खेलते खेलते , वो शादी कर के चली गई |
उसकी खट्टी मीठी बाते याद कर ,आसुओ का सैलाब उमड़ आता है |
न जाने कैसे उसी वक़्त उसका ,मेरे पास फोन चला आता है |
उससे शुख दुख जान करके सुकून आ जाता है |
ये बिटिया भी न कितनी अजीब होती है|
हमारे दिल के कितने करीब होती है|
शायद इसीलिए हमें इतनी अजीज होती है |
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
Thursday, August 23, 2012
इन्सान को इन्सान न समझते है हम
मजहबी बातो में लड़ते है हमदम
इतनी बात न समझ पाते है हम
लड़कर हम इनकी कुर्सी बचाते है हम
नेते तो ऐसे बईमान होते है की
हम जले तो रोटी शेक लेते है ये
गड़े तो उस पर घर बना लेते है ये
ये नेते तो ऐसे दरिन्दे है की
जरूरत मे माँ की आबरू भी बेच देते है.ये .रचनाकार--प्रदीप तिवारी
मजहबी बातो में लड़ते है हमदम
इतनी बात न समझ पाते है हम
लड़कर हम इनकी कुर्सी बचाते है हम
नेते तो ऐसे बईमान होते है की
हम जले तो रोटी शेक लेते है ये
गड़े तो उस पर घर बना लेते है ये
ये नेते तो ऐसे दरिन्दे है की
जरूरत मे माँ की आबरू भी बेच देते है.ये .रचनाकार--प्रदीप तिवारी
Saturday, July 14, 2012
Wednesday, April 25, 2012
जिन्दगी को समझाना,
अब मुस्किल सा लगता है ।
अकेला होता हु जब भी मै,
तब मुझे महफ़िल सा लगता है।
महफ़िलो मे होता हु जब भी मै,
तभी सूनसान सा लगता है।
एक पल जो अपना सा लगा था कभी ,
अब वही मुझे पराया सा लगता है।
जो कही बहुत दूर है मुझसे ,
वही मुझे अपना सा लगता है।
जब भी हसने को दिल चाहता है ,
तभी मेरा मन उदासा सा लगता है।
कभी मौत से तार्रुफ़ होता है तो,
लगता है अभी तो जीना बाकि है।
जब जीने की चाह होती है,
तब मौत में कुछ खास सा लगता है।
दोस्तों न जाने क्यु मेरा मन
आजकल बहुत उदास सा लगता है....
रचनाकार =प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
i
i
Tuesday, March 13, 2012
माँ
भुला दिया उसने उसी को.
जिन्दगी को नई जिन्दगी दी जिशने .
जीवन तक लगा दिया उसे लाने मे.
फिर भी भूल गया तू किसी और के आने से.
हर तरफ सिर्फ खुसिया दी जिशने .
फिर गम क्यों है उसके आशियाने मे.
मरहम बना दिया खुद को जिशने
फिर दर्द इतना क्यों उसके सीने मे.
दर्द को हरा कर खुसी दी जिशने
फिर खुसी क्यों नहीं उसके नसीब मे.
प्रदीप कहता है माँ का जीवन है सायद ऐसा
वरना माँ तो बनाती है सपूत उसे
पर होते न कपूत इस जहांन मे ..
रचनाकार...प्रदीप तिवारी
Tuesday, March 6, 2012
होली की सुभकामनाये
अबकी होली ऐसे रंगों..
मन प्रीत से रंग जाये.
रहे न एको मन मे बैर..
बस प्रेम मिलन हो जाये..
रंगों तन को ऐसे की
मन भी रंगा रंग हो जाये..
धुले भले ही तन से रंग..
पर प्रीत बसी रह जाये...
खो के भाई चारे मे....
साद एक दूजे के हो जाये..
छूटे चाहे जग सारा..
पर प्रीत न छूटने पाए..
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
.kavipradeeptiwari.blogspot.com
.
Thursday, March 1, 2012
mohbbat?????
jindgi bhar tanha rahe kyo ki kisi aur ka sath manjoor na tha...
kawahiso ko hi mar diya hamne kau ki unme tera na noor tha...
jindgi ke rasto ko mod diya teri khushiya ki taraf..
kau ki meri jindgi ko teri kushi ke alwa kuchha aur na manjoor tha...
dilo halat ko batlana to tughe jarur tha.....
par rok liya khud ke jajabato ko ..kau ki tri jindgi mai koi aur tha........rachanakar..pradeep tiwari
kavipradeeptiwari.blogspot.com
kawahiso ko hi mar diya hamne kau ki unme tera na noor tha...
jindgi ke rasto ko mod diya teri khushiya ki taraf..
kau ki meri jindgi ko teri kushi ke alwa kuchha aur na manjoor tha...
dilo halat ko batlana to tughe jarur tha.....
par rok liya khud ke jajabato ko ..kau ki tri jindgi mai koi aur tha........rachanakar..pradeep tiwari
kavipradeeptiwari.blogspot.com
Tuesday, February 21, 2012
Wednesday, February 1, 2012
इबादत
मोहब्बत को खुदा मानकर,
बिताया हर पल उसकी इबाबद में।
हर जुल्मो हालात को,
हस हस कर सहा उसकी चाहत में।
की खुदा मिला देगा मुझे,
उससे हर हाल में।
पर दुआ कबूल न की ,
न जाने क्यू मेरे भगवान ने।
रूठा कर खुदा से कहा मैंने,
कमी क्या थी मेरी तेरी इबादत मे।
उसने मुश्कुराकर कहा मुझसे ..
यू मिल सकता अगर मीत चाहने से
तो बिछड़ते न कान्हा राधा के प्यार मे।।
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
Subscribe to:
Posts (Atom)