उन्हें याद आया जब वाफाओ का फशाना मेरा ,
वे तड़प तड़प कर बेतहाशा पछताए|
वो अपने गुनाहों की माफी मागने घर मेरे आये|
मेरे घर वालो ने मेरा नया पता दिया उनको |
वो दौड़ते दौड़ते हमसे मिलने वहा भी वो आये|
दहलीज पर मेरे खूब आवाज लगाईं उन्होंने,
आशुओं से भिगोया भी जी भर कर मुझको|
पर हम तो ऐसा सोये अपनी कब्र पर
की जाग भी न पाए उनकी इस दस्तक पर.
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
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बहुत मार्मिक लिखा है आपने! दिल को छू गया!
ReplyDeleteसर इतने दिनों बाद आपकी रचना पढ़ रहा हू आप कहाँ खो गये थे ?
मेरी नई पोस्ट के लिए स्वागत है मेरे ब्लॉग जीवन पुष्प पर www.mknilu.blogspot.com
sadasya ban raha hu..
ReplyDeleteok dhanywad ...kuchha likane ka time nahi mila tha ..mai jarur padhunga neelu..utsahwardhan ke liye
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