मोहब्बत को खुदा मानकर,
बिताया हर पल उसकी इबाबद में।
हर जुल्मो हालात को,
हस हस कर सहा उसकी चाहत में।
की खुदा मिला देगा मुझे,
उससे हर हाल में।
पर दुआ कबूल न की ,
न जाने क्यू मेरे भगवान ने।
रूठा कर खुदा से कहा मैंने,
कमी क्या थी मेरी तेरी इबादत मे।
उसने मुश्कुराकर कहा मुझसे ..
यू मिल सकता अगर मीत चाहने से
तो बिछड़ते न कान्हा राधा के प्यार मे।।
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसच है जब कान्हा बिछड़ गए अपनी प्रीत से..तो हम क्या..तुम क्या??