जिन्दगी को समझाना,
अब मुस्किल सा लगता है ।
अकेला होता हु जब भी मै,
तब मुझे महफ़िल सा लगता है।
महफ़िलो मे होता हु जब भी मै,
तभी सूनसान सा लगता है।
एक पल जो अपना सा लगा था कभी ,
अब वही मुझे पराया सा लगता है।
जो कही बहुत दूर है मुझसे ,
वही मुझे अपना सा लगता है।
जब भी हसने को दिल चाहता है ,
तभी मेरा मन उदासा सा लगता है।
कभी मौत से तार्रुफ़ होता है तो,
लगता है अभी तो जीना बाकि है।
जब जीने की चाह होती है,
तब मौत में कुछ खास सा लगता है।
दोस्तों न जाने क्यु मेरा मन
आजकल बहुत उदास सा लगता है....
रचनाकार =प्रदीप तिवारी
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
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एक पल जो अपना सा लगा था कभी ,
ReplyDeleteअब वही मुझे पराया सा लगता है।
जो कही बहुत दूर है मुझसे ,
वही मुझे अपना सा लगता है।
बहुत सुंदर रचना....
thanku ...
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