जब बिटिया छोटी बच्ची थी,तब पायल छनकती थी |
मेरे नजर न आने पर ,पापा पापा चिल्लाती थी |
खूब लडती थी वो मुझसे ,जब खाली हाथ घर आता था |
उसकी एक मुस्कान से ,मेरी थकान दूर हो जाता थी |
जब दिन भर काम करके मै लौट कर घर आता था |
घोडा हाथी बनने की जिद करती ,फिर मुझ पर सवारी करती थी |
मेरे दर्द और शिकन को ,वो दूर से जान लेती थी |
मेरी बिटिया मेरे दर्द को ,दूर से पहचान लेती थी |
कभी न कोई फरमाइश की ,मेरे हर टेंशन की वो दवाई थी |
हसते खेलते न जाने वो कब बड़ी हो गई ,
गुड्डे के संग खेलते खेलते , वो शादी कर के चली गई |
उसकी खट्टी मीठी बाते याद कर ,आसुओ का सैलाब उमड़ आता है |
न जाने कैसे उसी वक़्त उसका ,मेरे पास फोन चला आता है |
उससे शुख दुख जान करके सुकून आ जाता है |
ये बिटिया भी न कितनी अजीब होती है|
हमारे दिल के कितने करीब होती है|
शायद इसीलिए हमें इतनी अजीज होती है |
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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