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Wednesday, September 19, 2012

बिटिया

जब बिटिया छोटी बच्ची थी,तब पायल छनकती थी |

मेरे नजर न आने पर ,पापा पापा चिल्लाती थी |

खूब लडती थी वो मुझसे ,जब खाली  हाथ घर आता था |

उसकी एक मुस्कान से ,मेरी थकान दूर  हो जाता थी |

जब दिन भर  काम करके मै  लौट कर घर  आता था |

घोडा हाथी बनने की जिद करती ,फिर मुझ  पर सवारी करती थी |

मेरे दर्द और शिकन को ,वो दूर से जान  लेती थी |

मेरी बिटिया मेरे दर्द को ,दूर से पहचान लेती  थी |

कभी न कोई फरमाइश की ,मेरे हर टेंशन की वो  दवाई थी |

हसते खेलते न जाने वो कब बड़ी हो गई , 

गुड्डे के संग खेलते खेलते , वो शादी  कर के चली गई |

उसकी खट्टी मीठी बाते याद कर ,आसुओ  का सैलाब उमड़ आता  है |

न जाने कैसे उसी वक़्त उसका ,मेरे पास फोन चला आता है |

उससे शुख दुख जान  करके सुकून आ जाता है |

ये बिटिया भी न कितनी अजीब होती है|

हमारे दिल के कितने करीब होती है|

शायद इसीलिए हमें इतनी अजीज होती है | 
रचनाकार -प्रदीप तिवारी 

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