भुला दिया उसने उसी को.
जिन्दगी को नई जिन्दगी दी जिशने .
जीवन तक लगा दिया उसे लाने मे.
फिर भी भूल गया तू किसी और के आने से.
हर तरफ सिर्फ खुसिया दी जिशने .
फिर गम क्यों है उसके आशियाने मे.
मरहम बना दिया खुद को जिशने
फिर दर्द इतना क्यों उसके सीने मे.
दर्द को हरा कर खुसी दी जिशने
फिर खुसी क्यों नहीं उसके नसीब मे.
प्रदीप कहता है माँ का जीवन है सायद ऐसा
वरना माँ तो बनाती है सपूत उसे
पर होते न कपूत इस जहांन मे ..
रचनाकार...प्रदीप तिवारी
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