इन्सान को इन्सान न समझते है हम
मजहबी बातो में लड़ते है हमदम
इतनी बात न समझ पाते है हम
लड़कर हम इनकी कुर्सी बचाते है हम
नेते तो ऐसे बईमान होते है की
हम जले तो रोटी शेक लेते है ये
गड़े तो उस पर घर बना लेते है ये
ये नेते तो ऐसे दरिन्दे है की
जरूरत मे माँ की आबरू भी बेच देते है.ये .रचनाकार--प्रदीप तिवारी
मजहबी बातो में लड़ते है हमदम
इतनी बात न समझ पाते है हम
लड़कर हम इनकी कुर्सी बचाते है हम
नेते तो ऐसे बईमान होते है की
हम जले तो रोटी शेक लेते है ये
गड़े तो उस पर घर बना लेते है ये
ये नेते तो ऐसे दरिन्दे है की
जरूरत मे माँ की आबरू भी बेच देते है.ये .रचनाकार--प्रदीप तिवारी
No comments:
Post a Comment