आखो और इशारों से होती थी हमारी बात ,
पर किस्मत न करा रही थी हमारी मुलाकात ।
दिल ही दिल में मेरे पल रहे थे ढेरो ख्वाब ।
पर उससे मिलने के लिए हिम्मत देती थी जवाब ।
मैंने एक दिन उस्से मिलने की हिम्मत दिखाई ।
उससे मिलने की एक दिन आस नजर आई ।
पर उससे मिलते ही मेरे पसीने छुट गए मेरे भाई ।
देखते ही पता चला पूरा पीस ही डिफेक्टिव् है ।
इसकी बाई आंख तो बाबा रामदेव की तरह फडकती है।
रुकरुक कर बोलना और चलने को,
हम अबतलक समझाते थे उसका सरमाना ।
पर असल में तो उसकी जुबान और चाल दोनों अटकती है।
पता चला असल तो में ये लड़की लकवे का शिकार है।
जिसके कारण इसका जीना हुआ दुस्वार है।
इस हालात को देखकर मेरे प्यार का सुनामी शांत हो गया।
कुछ पल के लिए तो मै खुद को ही हार गया।
अपने आप को सहेजकर मैंने अपना फर्ज अदा करने की गुजारिश।
उसने मुस्कुराकर कहा मौत मई मेरी मंजिल ,
तुम न बनो मेरी पथरीली राह के मुशाफिर।
इन हालात मई भी वो मुस्कुरा रही थी ।
वो खुश है इसका वो मुझे झूठा एहसास दिला रही थी।
मई कुछ कह पता उसके पहले ही वो जहा छोड़ गई ।
जिन्दगी जीते है कैसे वो मुझे जाते जाते सिखा गई ।
जिन्दगी जीते है कैसे वो मुझे जाते जाते सिखा गई ।
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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