रावन ने माँ सीता को चुराया , फिर भी उनका उसने सम्मान किया । अब इंसान ही इज्जत लूट लेता है । क लंक हम रावन को लगाते है, अब का राम , सीता को बेचा देता है| मर्यादा की बाते जो करते है वही सब नीलम होता है| कान्हा का प्रेम तो अनमोल था अब तो तमाशा सरेआम होता है ।
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