""""""""""" सहादत """"""""""""""""""""""""""""""
मेरा मौन भी अब जोर जो से कहने लगा है।
मेरी खामोसी को अब जहा समझने लगा है।
तभी तो खड़े है लोग मेरे जाने के बाद भी ,
जानते हुए भी की मेरा आना अब मुमकिन नहीं ।
फिर भी न जाने ये युवा जिद पर क्यों अडा है
ये अजीब करवा है जो एक ओर ही चल पड़ा है।।।
करना हमें ही पड़ेगा ,लड़ना हमें ही पड़ेगा ,
अब सायद युवा भी अब ये समझाने लगा है ।।।
मेरी सहादत व्यर्थ नहीं गई ये देखकर ,
मेरी रूह को सुकून बड़ा है ,रूह को सुकून बड़ा है
रचनाकार --प्रदीप तिवारी
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