जिन्दगी को जीना अब उसे बोझ लगने लगा होगा \
मरहम ही अब उसे चोट लगने लगा होगा ।
सोचा होगा उसने ,यहाँ बहुत राजनीती है मेरे जिन्दा रहने में
जिन्दगी से ही उसका भरोषा उठने लगा होगा
छोड़ दिया होगा उसने जिन्दगी की राह में चलना उसने
उसको खुद का जिन्दा रहने से ज्यादा खामोश रहना ही सही लगा होगा ,,,
रचनाकार -प्रदीप तिवारी
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