शाम ढले जब मेरे घर दीपक जले
मेरा मन घर जाने से बहुत डरे.
घर मे बीमार माँ दावाइयो के इंतजार मे होगी
बच्चे किताबो के इंतजार मे देख रहे होंगे दवार
बीबी सोचा रही होगी आज aa जाए कुछ
तो पडोशी से जाकर न मंगू उधार
इन सभी बातो को सोचकर मन घबरा रहा था
मेरा ब्लडप्रेशर बढ़ता ही जा रहा था
सोचा आज कहा से लाऊ उधार
इसशे अछ्छा है क्यों न मर जाऊ
इन्ही ख्यालो मे खोये हुए देर हो चुकी थी
घर पर माँ और पत्नी के मन मे आशंका घेर चुकी थी
माँ का व्याकुल मन घबरा रहा था
पत्नी का झूठा शाहश उन्हें ढ़ाढ़श बधा रहा था
घर पहुचते ही माँ ने गले से लगाया
पत्नी ने मुझे आशुओ से भिगोया
तब मुझे लगा क्या करने जा रहा था
अपनी खुशियों को ख़ुद ही मिटाने वाला था
ये जरूरते है आज नहीं तो कल होंगी पूरी
इनके बिना मेरी मेरे बिना इनकी जिन्दगी है अधूरी ||||
रचनाकार
Pradeep tiwari
www.kavipradeeptiwari.blogspot.com
www.pradeeptiwari.gmail.com

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